गोवर्धन पुजा के दिन बेलों की जगह कुम्हार समाज के लोग गधों की करते है पूजा ,कुम्हार समाज के लोग अपनी रोजी-रोटी के लिए गधे की करते हैं पूजा
भीलवाड़ा - दीपावली के दूसरे दिन अन्नकूट और गोवर्धन पूजा पर देश के अधिकतर हिस्सों में बैलों की विधि विधान से पूजा की जाती है पर राजस्थान के भीलवाड़ा जिले के माण्डल कस्बे में गधों की पूजा का बड़ा ही भव्य आयोजन होता है। कुम्हार समाज के लोग इस दिन गधों को नहला धुला कर बड़े ही सुंदर तरीके से सजाने के बाद उनकी पूजा का भव्य आयोजन करते हैं ।
माण्डल कस्बे वासी बताते हैं कि किसान बैल की पूजा करते हैं उसी प्रकार कुम्हार (प्रजापति) समाज के लोग गधों की पूजा सालों से करते आ रहे हैं क्योंकि इस समाज के लिए गधे ही रोजी-रोटी का बड़ा साधन है गंधें से तालाब से मिट्टी ढोकर लाते हैं इसलिए सालों से यह परंपरा माण्डल क़स्बे में निभाई जा रही है।
माण्डल में इस दिन (वैशाख नंदन) गधे की पूजा के लिए पूरा कुम्हार समाज इकट्ठा होता है प्रताप नगर क्षेत्र में गधों को नहला धुला कर सजाया जाता है इन पर रंग-बिरंगे कलर लगाए जाते हैं फिर इनको माला पहना कर पहले चौक में लाया जाता है। वहां पंडित पूजा अर्चना के बाद इनका मुंह मीठा कराते हैं फिर उनके पैरों में पटाखे डालकर इनको भड़काया जाता है फिर इनकी दौड़ संपन्न कराई जाती है। गधों की पूजा के अनूठे आयोजन को देखने के लिए माण्डल के आसपास के लोग आते है।
माण्डल कस्बे के गोपाल कुम्हार कहते हैं कि बैसाख नंदन पर्व माण्डल में लगभग 70 सालों से मनाते आ रहे हैं। हमारे पूर्वज पहले हर घर में गधे रखते थे उससे हमारी रोज़ी रोटी चलती थी मगर अब जैसे-जैसे साधन बढ़ रहे हैं इनकी संख्या कम होती जा रही है। इनको हम भूले नहीं और हमारे पूर्वज दीपावली पर इनको पूजते थे उसी परंपरा को निभाते हुए हम भी दीपावली के दूसरे दिन अनुकूट् और गोवर्धन पूजा के दिन हम इनको पूजते हैं। जिस प्रकार किसान अपने बैलों की पूजा करते है इस प्रकार हम कुम्हार समाज के लोग परंपरा को बनाए रखे हुए हैं।
बाइट - गोपाल कुम्हार
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