साहित्य सृजन कला संगम की काव्य गोष्ठी संपन्न खिले फूल सा चेहरा रखिए और मुस्कान का पहरा रखिए- बीरां

 

शाहपुरा-मूलचन्द पेसवानी|| शाहपुरा में साहित्य सृजन कला संगम के तत्वावधान में स्थानीय शोभा लाइब्रेरी में काव्य गोष्ठी का आयोजन समारोह पूर्वक किया गया।

शिक्षा विभाग के सेवानिवृत्त उपनिदेशक विष्णु दत्त विकल की अध्यक्षता में आयोजित इस काव्य गोष्ठी के मुख्य अतिथि गीतकार ओमप्रकाश सनाढ्य थे। फूल विषय पर आयोजित काव्य गोष्ठी का संचालन शिवरतन दाधीच ने किया गोष्टी के आयोजक गोपाल पंचोली ने सभी का स्वागत किया। गोष्टी में वरिष्ठ कवि एवं साहित्यकार डॉ कैलाश मंडेला, संगीतकार बालकिशन बीरा, बालमुकुंद छीपा, जयदेव जोशी, भंवर गॉड, ओम अंगार, अशोक बोहरा, गोपाल पंचोली, शिवरतन दाधीच, विष्णु दत्त विकल ने अपनी अपनी रचनाओं की प्रस्तुति दी। संस्था के नवाचारों के तहत अपने काव्य रचनाओं को धार देने के विस्तार के लिए गोष्टी में खुली चर्चा के साथ-साथ रचनाओं के संप्रेषण में सकारात्मक एवं सुधारात्मक टिप्पणी भी प्रस्तुत की गई।


इस दौरान अगले माह की गोष्टी के लिए आंख विषय पर रचनाएं लिखने का निर्णय लिया गया। ओम सनाढ्य ने अपनी रचना गूंजता जीवों का निर्णय स्वार्थी मेरे हृदय रस को पीने तुम आओ प्रिय अब तो कि वक्त ना निकल जाए रचना प्रस्तुत की। विष्णु दत्त व्हीकल ने फूलों से मुक्त मुलाकात होती है मगर पत्थरों से बात होती है डॉ कैलाश मंडेला ने कली का रस चूस कर मर्द से फूला फूल तेवर उसके देखकर त्याग आकर निर्मूल के अलावा अन्य रचनाएं भी सुनाई।

बीरां ने खिले फूल सा चेहरा रखिए, और मुस्कान का पहरा रखिए, गुलशन में गुल खिल जाएंगे, सपना सदा सुनहरा रखिए, सब दिल के करीब होंगे, सभी से रिश्ता गहरा रखिए, जिंदगी सरेआम नहीं हो, राजे दिल के अंधेरा रखिए, जुबां कभी फिसले ना कहीं, जज्बातों को ठहरा रखिए, बीरा बिगड़ी बात बनेगी, आशाओं का सवेरा रखिए रचना सुनाकर गोष्ठि को उंचाईयां प्रदान की। 



गोपाल पंचोली ने न जाने किस बात पर, लाल पीला होकर वे मुझसे बोले फूल समझ रखा है क्या, मैं सहम गया कुछ समझ न पाया संभाल खुद को हाथ जोड़ बोला नही भाई बिलकुल नही आप तो शूल जैसे चुभ रहे हो आपके चेहरे का रंग उड़ा हुआ है न तो कूल हो न ही खुश मिजाज हो न फिजा में खुशबू भर रहे हो तो आपको फूल  कैसे  समझे। वे फिर तमतमा कर बोले बात मत बना  सीधे सीधे बता फूल समझ रखा है क्या जो मुझ पर हंसते हो अबकी पैर पकड़ कर बोला नही भैया बिलकुल नहीं तुम्हारे गुस्से से खोफ खा रहे है आप बे वजह निशाना बना रहे हैं सच कहूं  आपको  फूल समझूं  तो उस फूल को क्या समझूंगा रचना सुनायी।