मायड़ भाषा को छोड़ा तो मूल पहचान ही मिट जाएगी - भाटी ,राजस्थानी का आदिकाल ही हिंदी का आदिकाल है – अर्जुन देव

उदयपुर- मौलिक संस्था और सुखाड़िया विवि के राजस्थानी विभाग के साझे व राजस्थान साहित्य अकादमी, उर्दू अकादमी, उत्रर क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र के सहयोग से सुखाड़िया विवि के बप्पा रावल सभागार में आयोजित हो रहे भाषा, साहित्य व कला के कार्यक्रम "मेला" के दूसरे दिन राजस्थानी भाषा को लेकर विमर्श हुआ।



     मौलिक के संस्थापक शिवराज सोनवाल ने बताया कि पहले सत्र में "मायड़ भाषा री  महता" विषय पर बोलते हुए साहित्य अकादमी दिल्ली में राजस्थानी के संयोजक अर्जुन देव चारण ने कहा कि हिंदी भाषा का प्रारम्भिक इतिहास मूल रूप से राजस्थानी का इतिहास ही है। राजस्थानी का आदिकाल ही हिंदी का प्रारम्भिक काल कहलाता है। मायड़ भाषा के महत्व को रेखांकित करते हुए उन्होने कहा कि दुनिया के किसी भी क्षेत्र की मायड़ भाषा वहां के नागरिकों के लिए सबसे अधिक महत्वपूर्ण है। अथर्ववेद की ऋचा में ऋषि ने मातृभाषा को अपने अनुकूल होने की प्रार्थना की है। इसका तात्पर्य है कि मायड़ भाषा शुरू से ही अग्रणी स्थान पर रहती आई है। वर्तमान में मातृभाषा में शिक्षा दिए जाने के मूल में यही भावना है।

जोधपुर से आए राजस्थानी के बड़े साहित्यकार आईदान सिंह भाटी ने कहा कि मायड़ भाषा को छोड़ने वालों की अगली पीढ़िया अपनी मूल पहचान खो देती है। उन्होने राजस्थानी भाषा के ध्वनि सामर्थ्य को दर्शाते एक छंद का सस्वर पाठ भी किया। बीकानेर से आए राजस्थानी भाषा के पूर्व संयोजक मधु आचार्य आशावादी ने कहा कि राजस्थानी भाषा का जितना साहित्य प्रकाशित हुआ है उससे पचास गुना ज्यादा लोक में बिखरा पड़ा है। लोगों के कंठों में लोकगीत, लोककथा, बात आदि रूपों में सुरक्षित इस साहित्य को हमारी परम्पराओं ने पीढी दर पीढ़ी आगे बढ़ाया है। वर्तमान पीढ़ी के परम्पराओं से कटने से मायड़ भाषा का काफी नुकसान हुआ है। मायड़ भाषा नहीं हो तो संवेदना, सपने, भाव एवं विचार ही नहीं होंगे। ऐसे मे मानव पत्थर के सिवा कुछ नहीं।

     पुरूषोत्तम पल्लव ने कहा कि आज माताएं अपने बच्चों को सुलाते वक्त मायड़ भाषा में कहानियां नहीं सुनाती। मायड़ भाषा से हमारी संस्कृति एवं परम्परा का पता चलता है। जयपुर से आए प्रमोद शर्मा ने कहा कि पेड़ को पल्लवित करने के लिए जड़ों को सींचना पड़ता है। हमें भी शर्म छोड़कर दैनिक जीवन में मायड़ भाषा का प्रयोग शुरू करना चाहिए। सत्र का संचालन डॉ सुरेश सालवी ने किया।

 

ओळख राजस्थान री सत्र में हुई मान्यता की मांग

दूसरे सत्र में युवाओं में लोकप्रिय शिक्षक राजवीर सिंह चलकोई ने राजस्थानी की मान्यता के लिए आंदोलन को ऩई धार देने की बात कही। उन्होने कहा कि दो साल चुनावी वर्ष हैं। राज्य सरकार पर दबाव बनाकर राजभाषा का दर्जा दिलवाया जा सकता है। वहीं केंद्र सरकार पर दबाव बनाकर आठवीं अनुसूची में शामिल करवाने में सफलता प्राप्त की जा सकती है। उन्होने कहा कि यह विडमबना ही है कि प्रदेश में राजस्थानी को तृतीय़ भाषा का दर्ज तक हासिल नहीं है। सत्र का संचालन करते हुए बीकानेर के वरिष्ठ पत्रकार व साहित्यकार हरीश बी शर्मा ने कहा कि नई पीढी को समय निकाल कर बुजुर्गों के सानिध्य में रहना चाहिए। इससे वे अपनी भाषा व संस्कार से जुड़े रह सकेंगे।

राजस्थानी कविताओं की महफिल में बहे विभिन्न रस

दोपहर बाद राजस्थानी कविताओं के सत्र में मोहन लाल जाट ने "भालो भड़क्यो रे...." कविता से मेवाड़ी सपूतों की वीरता का बखान किया। नरेन्द्र सिंह रावल ने हल्दीघाटी के युद्ध के बाद घायल चेतक और प्रताप के काल्पनिक संवाद के माध्यम से "हंस के सीख देवो राणाजी ...." कविता से करुण रस की धार बहा दी। विमला महरिया ने गणगौर और मायड़ भाषा के गीतों से श्रृंगार रस से सबको सराबोर कर दिया। छत्रपाल शिवाजी ने बालिका पर वागड़ी कविता "डिकरी बना दुनिया में हरते चालेगा...." सुनाकर दाद लूटी। संचालन कर रही बीकानेर की कवयित्री मोनिका गौड़ ने रिसाणे चांद जैसी नए तेवर की कविताएं सुनाई। वरिष्ट कवि पुरुषोत्तम पल्लव ने "अरे चितारा एक-एक चितर थूं असो वणाजे रे..." और मेवाड़े के व्यंजन दाल-ढोकला पर मधुर गीत सुनाकर समा बांध किया।

     सोनवाल ने बताया कि साहित्य अर आध्यात्म जातरा सत्र में डॉ श्री कृष्ण जुगनू, पुष्कर गुप्तेश्वर, डॉ लोकेश राठौड़ व रेखा शर्मा ने विचार रखे। संगीत सत्र में तनिष्क राजदान, रूचिता पालीवाल, रूद्रादित्य पालीवाल ने अपनी प्रस्तुतियों से मन मोहा। वहीं प्रथम पाठक ने हारमोनियम व त्रीजल पालीवाल ने तबला पर अपने हुनर का प्रदर्शन किया। शाम को राजस्थानी सांस्कृतिक जलसा हुआ जिसमें मारिषा दीक्षित जोशी व नारायण गंधर्व ने गायन व विजय लक्ष्मी आमेटा ने लोक नृत्य से दर्शकों का मन मोह लिया।

शनिवार को होंगे उर्दू भाषा पर आधारित सत्र

मेला निदेशक कपिल पालीवाल ने बताया कि तीसरे दिन शनिवार को शायरी, सिनेमा मे उर्दू व हिंदी की नजदीकियां, गजल संग केनवास आदि सत्र होंगे। इनमें महेंद्र मोदी, अश्विनी मित्तल, अब्दुल जब्बार, हदीस अंसारी, डॉ सरवत खान, वैभव मोदी व रतत मेघनानी हिस्सा लेंगे। गजल संग कैनवास सत्र में भूपेंद्र पंवार व कोमल बारेठ गजल गायन करेंगे। उसी समय करीब 10 चित्रकार कैनवास पर उन भावों को उकेरेंगे। वहीं मृण कलाकार कोई शिल्प रचना करेंगे।