फिज़ा में बिखरे सुर, केनवास पर उभरे रंग ,मेला के"गजल संग केनवास" सत्र ने मोहा मन , शाम को आलोकनामा में शायरी ने लुभाया श्रोताओं को

उदयपुर जागरूक - सुखाडिया विवि का बप्पा रावल सभागार शनिवार को सुरों और रंगो के अद्भुत संगम का गवाह बना। गायकों ने गजल के सुर बहाए तो चित्रकारों ने केनवास पर कूंची से रंग बिखेरे। मौका था मौलिक संस्था और सुखाडिया विवि के राजस्थानी विभाग के साझे में राजस्थान साहित्य अकादमी, उर्दू अकादमी और उत्तर क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र के सहयोग से आयोजित किए जा रहे भाषा, साहित्य व कला के आयोजन मेला के तीसरे दिन "ग़ज़ल संग केनवास" सत्र का। मौलिक के संस्थापक शिवराज सोनवाल ने बताया कि इस सत्र में चित्रकारों की ओर बनाए गए चित्रों की नीलामी करेंगे और उससे प्राप्त होने वाली धनराशि शिक्षा के क्षेत्र में वंचित बच्चों की सहायतार्थ प्रशासन को भेंट किया जाएगा। भूपेंद्र पंवार व कोमल बारेठ ने गज़लें पेश कीं और चित्रकार हेमंत जोशी, चेतन औदीच्य, सुनील लड्ढा, डॉ चित्रसेन, अर्चना मिश्रा, दर्शना राजवैद्य, नमित कड़िया, नीलोफर मुनीर ने गज़ल के भावों को ग्रहण करते हुए पेंटिंग्स बनाई और मृण शिल्पी भावेश सुथार ने कालकृति बनाई।



मुखबिर वेबसीरीज के निर्माता ने बांटे अनुभव

शिवराज सोनवाल ने बताया कि मेला का तीसरा दिन उर्दू भाषा के नाम रहा।  प्रसिद्ध वेब सीरीज के निर्माता वैभव मोदी ने सिनेमा में हिंदी–उर्दू की नजदीकियों पर विस्तार से चर्चा की। उनसे रजत मेघनानी ने बात की। शायरी कल, आज और कल  विषय पर महेंद्र मोदी, अश्विनी मित्तल, अब्दुल जब्बार, हदीस अंसारी, एम आई ज़ाहिर व डॉ सरवत खान ने अपने विचार रखे।
"दिल से दिल तक" सत्र में अश्विनी मित्तल ने"एक दूजे के सामने काटे जाते हैं, हम इंसान भी बिल्कुल पेड़ों जैसे हैं.." से शुरुआत कर अपने शेर और मिसरों से श्रोताओं का दिल जीत लिया।

 

आलोकनामा में शायरी से बंधा समां

सायंकालीन सत्र में मशहूर शायर आलोक श्रीवास्तव ने अपने अनूठे अंदाज में शेर ओ शायरी से समां बांध दिया। "यह कहना गलत है कि तुम पर नजर नहीं, मसरूफ हम बहुत हैं बेखबर नहीं" से अपना सत्र प्रारम्भ किया। पटना से आई प्रेरणा प्रताप ने उनसे सवाल किए जिन पर उन्होने अपने शायरी के सफर को लेकर विस्तार से चर्चा की। तुम सोच रहे हो बस बादल की उड़ानों तक, मेरी तो निगाहें है सूरज के ठिकानों तक.....  सब उसका करिश्मा है, मंदिर के तरन्नुम से मस्जिद की अजानों तक.... दिल आम नहीं करता अहसास की खुशबू को, बेकार ही लाए हम चाहत को जबानों तक.... ऐसी भी अदालत है जो रूह परखती है, महदूद नहीं रहती वो सिर्फ बयानों तक.... सुनाकर दाद लूटी। प्रेरणा प्रताप ने भी अपनी रचनाओं का पाठ किया।

रविवार हिंदी को समर्पित

मेला के अंतिम दिन रविवार को हिंदी विषय पर सत्र होंगे। मेरे लिए साहित्य के मायने, जीवन गीतों के पार, दलित आदिवासी लेखकों के समक्ष चुनौतियां, स्त्री शक्ति और अभिव्यक्ति सत्र होंगे। सायंकाल रुह से रूह तक के साथ ही मेला का समापन होगा। भानु भारती, भंवरलाल श्रीवास, प्रताप राव, चेतन औदिच्य, अनुज गर्ग, दिनेश पंत शुभम आमेटा, रत्न कुमार सांभरिया, गजाधर भरत आदि भाग लेंगे।