गंगापुर@जागरूक
खौलते हुए देशी घी में इन दिनों गंगापुर, रायपुर व कपासन में एक विशेष मिठाई तैयार हो रही है। दीवाली के सीजन में सिर्फ 20 दिन ही बनाई जाती है और भाई दूज के मौके पर इसकी क्या डिमांड होती है! दिखने में वड़ा जैसी, नाम है 'अकबरी'। इतिहास 150 साल पुराना और स्वाद ऐसा कि एक बार चख लिया तो भूल नहीं पाएंगे। ग्वालियर के पूर्व सिंधिया राजघराने से इसका विशेष जुड़ाव है। इस 'अकबरी' के दीवाने राजस्थान ही नहीं, बल्कि गुजरात, मध्यप्रदेश, कर्नाटक में भी हैं।
दूर से देखने पर यह मिठाई कुछ साउथ इंडियन डिश सांभर वड़ा जैसी लगती है। छूकर देखने पर इसका टेक्सचर इडली जैसा नजर आता है। लेकिन, इसका नाम है अकबरी। 150 सालों से गंगापुर में अकबरी मिठाई को बनाया जा रहा है। कई हलवाइयों ने तो इस मिठाई को बनाते-बनाते अपने जीवन के 80 साल पार कर लिए। उनका भी यही कहना है कि इस मिठाई के लाजवाब स्वाद की जैसी दीवानगी 100 साल पहले थी, वैसे ही आज भी है।
भीलवाड़ा जिले के गंगापुर और रायपुर कस्बे में इस मिठाई को बनाने का काम शरद पूर्णिमा के दिन से शुरू हो जाता है, जो दीपावली के बाद गोवर्धन पूजा और भाई दूज तक चलता है। अकेले गंगापुर में इस मिठाई को बनाने के लिए अभी भी 150 से ज्यादा हलवाई व उनका स्टाफ काम पर लगा हुआ है। यहां से यह मिठाई तैयार होकर गुजरात, महाराष्ट्र, एमपी, ग्वालियर, कर्नाटक, केरल, आंध्र प्रदेश तक भेजी जाती है।
देसी घी में तला जाता है
अकबरी मिठाई को चावल के आटे से तैयार किया जाता है। इसको आकार देने का तरीका साउथ इंडियन डिश सांभर वड़ा की तरह है। इसे देसी घी में क्रंची होने तक तला जाता है। इसके बाद चाशनी में डुबो दिया जाता है। फिर बड़े-बड़े खोमचे में सजा दिया जाता है। दूर से देखने वाला यही समझता है कि ये सांभर वाला वड़ा है या फिर कोई साउथ इंडियन डिश।
सिर्फ शरद पूर्णिमा से भाई दूज तक बनती है मिठाई
यूं तो गंगापुर में मिठाई की 4-5 दुकानें ही हैं, लेकिन शरद पूर्णिमा से भाई दूज तक बनने वाली इस मिठाई को बनाने के लिए पूरे कस्बे में 150 से ज्यादा स्टॉल लग जाती हैं। भाई दूज के दिन बहनें भी अपने भाई के लिए यही मिठाई लेकर जाती हैं। सीजन के 20 दिनों में इसकी डेली सेल 400 से 500 किलो होती है। देशी घी में बनने वाली इस मिठाई के बाजार भाव अभी 300 से 400 रुपए किलोग्राम हैं। ट्रेडिशनल मिठाई होने के कारण लोग इसे घर पर भी बनाते हैं।
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